पदार्थान्वयभाषाः - (सुपर्णः) शरीर में प्राण या राष्ट्र में वाज पक्षी की भाँति सुप्रगतिशील राज्यमन्त्री (इत्था नखम्-आ सिषाय) सत्य ही बन्धन बल को भली-भाँति बाँधता है या नखसमान तीक्ष्ण शस्त्र को अपने शरीर में बाँधता है (अवरुद्धः-सिंहः परि पदं न) जैसे किसी वनप्रदेश में घिरा हुआ सिंह निजरक्षा स्थान की भली-भाँति शरण लेता है (निरुद्धः-चित् तर्ष्यावान् महिषः) या जैसे पिपासु बलवान् भैंसा किसी काष्ठ-बाड़े में रोका हुआ है, ऐसा जो रोग या शत्रु हो (तस्मै गोधा-अयथम्-एतत् कर्षत्) उसके लिये-उसको गोधा अर्थात् गति को धारण करनेवाली प्रबल नाड़ी शक्ति से अनायास प्राण बाहर कर दे या राज्यमन्त्री गोधा अर्थात् माध्यमिक वाणी-विद्युत् को धारण करती है जो डोरी, उसके द्वारा शिविर से बाहर निकाल दे ॥१०॥
भावार्थभाषाः - शरीर में प्राण अपने प्रबल बन्धन को बाँधता है-या फैलाता है अपने क्षेत्र में, जैसे सिंह अपने रक्षास्थान को सुरक्षित रखता है और बलवान् भैंसे सदृश रोगों को प्रबल नाड़ी शक्ति से उसे बाहर निकाल फैंकता है तथा राष्ट्र में सुप्रगतिशील राज्यमन्त्री तीक्ष्ण शस्त्रों को रक्षार्थ बाँधता है। अपने क्षेत्र में सिंह जैसे अपने रक्षास्थान को पकड़ता है और भैंसे जैसे बलवान् शत्रु को विद्युत्तन्त्री द्वारा अपने क्षेत्र से बाहर निकाल फैंकता है ॥१०॥